Marghat Me Halchal - मरघट में हलचल Horror Hindi Poem Written by Amrit Sahu
Horror Poem Written By AMRIT SAHU |
डरावनी कविता
मरघट मे हलचल
दिन को जले, लाशे जहाँ पर
रातो को डरावने बोल है
घर के पीछे सुनसान सा
ऐसा मातम भरा माहौल हैं
छाती चीर जाए ऐसी
लाश चीखती वहाँ हरपल
रात होते ही बढने लगती है
मरघट की भयानक हलचल
मरघट मे जाने से मानो
वे मूक प्राणी हमे रोक रहे
जैसे प्रेत आत्माओ को देख
कुत्ते कर्कश स्वर मे भौक रहे
बरगद पीपल के पेड़ों पर
जैसे भुत - प्रेतो का मण्डराता साया
भुल से भी ना देख, उन हिलते पेड़ों कों
जिसने देखा वह बच ना पाया
कहीं पर बिना मुण्डो की लाशे
लकडी पर जल रही तो
कही पर दुर्घटनाग्रस्त पिसे मुर्दे
मरघट मे ही उबल रही
जले हुए वो मुर्दे देखो
रातो को जैसे उछल रहे
काले घने बरगद के तने पर
सिर लटकाए झूल रहे
अर्ध्दरात्रि के उस मौन समय मे
उल्लू की आंखे जल रही
ऐसे अंधेरे खॅूंखार मौसम में
भयानक स्वर वो उगल रही
चीथ-चीथकर उन अधजले लाशो को
बनबिलाव अकेले निगल रही
टोने जादू से यह देख घर से
डायन रातो को निकल रही
दुर्गंधित उस वातावरण मे भी
वह आँखो का रंग बदल रही
खून का प्याला होठो पर रख
वह डायन कितनी मचल रही
विधवा सी दिखती वो चुडैल
आँखो से तुमको डरा रही
तुम्हारे आसपास हलचल करके
अपना अहसास करा रही
नाखून भी उसके बढ़े हुए हैं
और बड़े बड़े बिखरे बाल
नींबू, मिर्च और सिंदूर से
नित नचाती वह कंकाल
रूदर स्वर करती आत्माएँ
आपबीती यूँ सुना रही
अपने प्रतिशोध की ज्वाला में
वह कितनो का खून बहा रही
रातो को गुजरते राहगीरो की
वह बुरी तरह आंखे नोच रही
कोई बच ना जाए यह सोच
वह उनका गला दबोच रही
तड़पती आत्माओ का वास वहाँ पर
बुजुर्ग हमेशा से कहते है
फिर भी नादान बनकर क्यों वहाँ
लोग जाने का प्रयत्न करते है
मत जा रे उस निर्दयी शमशान में
दफन हुए बिना सड़ जायेगा
उस मरघट की छोटी सी हलचल से
बिन पानी मर जाएगा ।
कवि :- अमृत साहू
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