Andhera Ho Gaya - अंधेरा हो गया Hindi Horror Poem Written by Amrit Sahu
अंधेरा हो गया
अंधेरा हो गया, चुप हो जा
डर की आंधी चलने वाली हैं
मौसम करवट बदल रही
ये रात कितनी काली हैं
दरवाजे, खिड़कियॉं बंद कर दे
सूने जंगल से, आत्माए आने वाली हैं
मौत का खत देने को
देख दरवाजे पर कोई खड़ा हैं
मुड़कर देख, खून से लतपथ कोई
तेरे बिस्तर पर मृत पड़ा हैं
जागने लगे वो लाशे भीं
वर्षो से जो शमशान मे गड़ा हैं
तड़पती सिसकती वो आवाज़े
गुंजने लगी अब कानो में
भूतो का डेरा हैं यूँ
वो गिन रहे मुझे अनजानो में
बेबसी भी बढ़ने लगी अब
घुटन सी होने लगी इन मकानो में
आइने में किसकी शक्ल हैं जाने
छींटे हैं कितने खून के
कांपते हुए इस दिल को
दे दे एक पल कोई सुकून के
काले धुंधले से वो शैतान
रूलाकर चेहरा मेरा बेरंग करे
जलते-बूझते रोशनी के साये
हँसकर मुझपर यूँ व्यंग्य करे
जीना मरना जब तुझको हैं
तो क्यू प्रेत तुमको तंग करे
प्यासे मरने की नौबत आई
खिड़कियाँ जोरो से टूट रही
धुँआ-धुँआ घर हो गया
जिंदगी यूँ ही छूट रही
मौत आए पर तड़पे न कोई ऐसे
लेकिन ऐसी किस्मत भी आज रूठ रही
कवि: अमृत साहू ,
ये भी देखें - अंधेरे में काला कफन (डरावनी कविता)
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