Zindagi Guzar Rahi - जिंदगी गुजर रही Sad Hindi Poem Written by Amrit Sahu
जिंदगी गुजर रही
जिंदगी यूँ ही गुजर रही
मैं चल रहा, मेरी जिंदगी चल रही
नन्ही चिड़ीया क्या गुमां करे रंगो पर
वो तो अशुद्ध जल से धुल रही
वह तेज लालिया रंगो वाला
सुबह उगे शाम से ढल रही
अकेली हवा क्या करे बेचारी
कितना उत्साह मेरे मन में भरी रही
मैं हैरान विचारो में लिन क्यों
जिंदगी गरीबी से नही उबर रही
मजबुरी को देख मेरी, अमृत
वो रात कितनी मचल रही
मैं चल रहा मेरी जिंदगी चल रही
और इतनी नादान जिंदगी मेरी
बस यूँ ही गूजर रही
खुशियों का आवरण हैं तन पर
पर जख्म अंदर उभर रही
मैं क्या करू बता जिंदगी
तू क्यू इस तरह से गूजर रही ।
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