Prakriti Ka Krodh - प्रकृति का क्रोध Hindi Poem on "nature's wrath" written by Amrit Sahu
प्रकृति का क्रोध
है गर्म ज्वाला निकल रही
धरती पर ही जम रही
चीखा जैसे नभ मानो
रोया जैसे जग मानो
हिल उठे पर्वत भी
प्रकृति में ईश्वर है छुपा
मिटाने चला पाप को
मच गया चारों ओर हाहाकार
क्योंकि बढ़ चुका था अत्याचार
अब दानव प्रकृति का होने लगा स्वागत सत्कार
अब झेलो इस प्रकृति की मार
पर थमती नहीं थी यह टकरार
समुद्र उछला आसमान तक
आंधी तूफान की लहर चली
पृथ्वी फटने लगी जगह-जगह
सबकी आयु घटने लगी
कोई डूब गया सागर में
कोई जल गया उस ज्वाला में
मृत्यु से कौन बच सका है
मातम सा छा गया सब ओर
चीखने चिल्लाते सब लगे भागने
पर झुलस गए सब मृत्यु की आग में
यह तो कोरी कल्पना है
रोक लो इस पाप को
नहीं तो दानव जाग जाएगा
सारी दुनिया को सुला जाएगा
कवि :- अमृत साहू
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