ढोल की पोल Animals Stories of Panchatantra in Hindi
ढोल की पोल Animals Stories of Panchatantra in Hindi
एक बार गोमायु नामक एक गीदड़ भूख और प्यास से व्याकुल होकर भोजन की तलाश में इधर-उधर भटक रहा था। घूमते-घामते वह एक ऐसी जगह जा पहुंचा जहां कुछ वर्ष पूर्व दो राज्यों की सेनाओं के बीच युद्ध हुआ था।
वहां सैनिकों द्वारा छोड़े हुए टूटे अस्त्र-शस्त्र पड़े थे। उन्हीं में एक ढोल भी था जो एक वृक्ष के नीचे रखा हुआ था। हवा से हिलती वृक्ष की शाखाएं जब उस ढोल से टकराती तो बड़ा भयंकर स्वर निकलता था।
गीदड़ ने जब वह भयंकर स्वर सुना तो वह डर गया। किंतु दूसरे ही क्षण उसे याद आया कि भय या आनंद के उद्वेग में हमें सहसा कोई काम नहीं करना चाहिए। यही सोचकर वह धीरे-धीरे उपर चल पड़ा, जिघर से आवाज आ रही थी।
आवाज के बहुत निकट पहुंचा तो उसकी निगाह ढोल पर पड़ी। सतर्कतापूर्वक उसने ढोल को उलटा-पलटा, और प्रसन्न हो गया कि आज तो कई दिन के लिए पर्याप्त भोजन मिल गया।
यही सोचकर उसने दर के ऊपर लगे चमड़े पर अपने दांत गड़ा दिए। चमड़ा बहुत कठोर या, गीदड़ के दो दांत भी टूट गए बड़ी कठिनाई से टोल में छेद हुआ।
उस छेद को चौड़ा करके गोमायु जब अंदर पहुंचा तो यह देखकर उसे बहुत निराशा हुई कि वह तो अंदर से बिल्कुल खाली है। उसमें रक्त, मांस-मज्जा ये ही नहीं।
Animals Stories of Panchatantra in Hindi
यह कया सुनाकर दमनक ने पिंगलक से कहा-‘इसलिए मैं कहता हूं राजन, कि किसी के स्वर मात्र से ही भयभीत नहीं होना चाहिए।’ ‘परंतु मैं क्या करूं, मेरा सारा अनुयायीवर्ग भयभीत होकर यहां से भागना चाह रहा है।
मैं एकाकी यहां कैसे रह सकता हूं ?’ ‘इसमें आपके अनुयायियों का दोष नहीं है जब आप स्वयं स्वामी होकर डर गए हैं तो उनका डर तो स्वाभाविक ही है।
फिर भी कोई बात नहीं, मैं उस स्वर के विषय में पता लगाकर आता हूं।’ “ठीक है, जाओ। प्रभु तुम्हारी रक्षा करे।’ दमनक जब चला गया तो पिंगलक सोचने लगा कि उसने यह बुरा किया जो एक गीदड़ पर विश्वास करके उसे अपने मन की बात बता दी।
यदि दमनक ने मंत्री पद से हटाए जाने का बदला लेना चाहा, तो फिर क्या होगा? क्योंकि जो सेवक एक बार सम्मानित किए जाने के बाद फिर अपमानित किया जाता है, वह राजा के विनाश का ही प्रयल करता है।
अतः उचित यही है कि किसी अन्य स्थान पर छिपकर बैठा जाए और दमनक की गतिविधि पर नजर रखी जाए। यह सोचकर सिंह वहां से दूसरे स्थान पर बैठकर दमनक के लौटने की प्रतीक्षा करने लगा।
दमनक संजीवक के निकट पहुंचा, और जब देख लिया कि यह तो बैल है तो मन में प्रसन्न होता हुआ सोचने लगा-‘ईश्वर की कृपा से यह तो और अच्छा हुआ।
अब मैं इस बैल के साथ सिंह की मित्रता कराकर पुनः शत्रुता कराऊंगा और संधि विग्रह की इस नीति से पिंगलक को अपने वश में कर लूंगा।’ इस प्रकार सोचता हुआ वह पिंगलक की ओर चल पड़ा।
पिंगलक ने जब उसे अपनी ओर आते हुए देखा तो अपने मनोभावों को छिपाते हुए, पहले की तरह अपने सेवक व्याघ्र, भालू, भेड़िया आदि के बीच आकर अपने स्थान पर बैठ गया।
दमनक भी पिंगलक का अभिवादन कर उसके निकट आ बैठा। पिंगलक ने पूछा- क्या तुमने उस जीव को देखा ?’ हां महाराज। आपकी कृपा से देख लिया है।’
पिंगलक ने पुनः पूछ-क्या सचमुच उसे देख आए हो? दमनक ने कहा-‘क्या महाराज के समय कहा जा सकता है? कर गया है कि जो व्यक्ति राजाओं और देवताओं के समझ झूठ बोलता है, वह चाहे जितना भी महान क्यों न हो, तत्काल विन्ट हो जाता है।’
दमनक की बात सुनकर पिंगलक ने कहा-ठीक है, हमें विश्वास हो गया है कि तुम उसे देख आए हो। उसने तुम्हें इसलिए नहीं मारा होगा, क्योंकि समर्थजन, दुर्बलों पर क्रोध नहीं करते।
शक्तिमान व्यक्ति तो अपने समान शक्तिसम्पन्न व्यक्ति पर ही अपना क्रोध प्रकट करता है।’ दमनक ने कहा ठीक है राजन | वह शक्तिमान है और मैं दीन हूं। जो भी आप समझें।
फिर भी यदि आपकी इच्छा हो और आप आज्ञा दें तो मैं उसे आपकी सेवा में एक मृत्य (नौकर) के रूप में उपस्थित कर सकता हूं।’ कुछ संशय के साथ एक दीर्घ श्वास खींचते हुए पिंगलक ने पूछा-‘क्या तुम ऐसा कर सकते हो?’ अवश्य कर सकता हूं महाराज।
बुद्धि के बल पर प्रत्येक कार्य किया जा सकता है।’ तब पिंगलक ने कुछ नम्र स्वर में कहा-‘यदि तुम इस कार्य को कर सकते हो तो आज से मैं तुम्हें पुनः मंत्री पद सौंपता हूं।
आज से इस प्रकार के सारे कार्य तुम्हीं किया करोगे।’ पिंगलक से आश्वासन पाने के बाद दमनक संजीवक के पास पहुंचा और अकड़ता हुआ बोला-‘अरे, दुष्ट बैल! तू यहां नदी के किनारे व्यर्थ ही हुंकार क्यों भरता रहता है? चल, तुझे मेरा स्वामी पिंगलक बुला रहा है।’
यह पिंगलक कौन है भाई ?’ संजीवक ने पूछा। दमनक ने सगर्व कहा-‘अरे, तू पिंगलक को नहीं जानता। पिंगलक इस वन का राजा है। चलकर देखेगा तो तुझे उसकी शक्ति का पता चल जाएगा।
वह जंगल के जानवरों के मध्य घिरा वहां एक वृक्ष के नीचे बैठा है।’ यह सुनकर संजीवक के प्राण सूख गए। दमनक के सामने गिड़गिड़ाता हुआ वह बोला-‘मित्र ! तू सज्जन प्रतीत होता है।
यदि तू मुझे वहां ले जाना चाहता है तो पहले स्वामी से मेरे लिए अभय-वचन ले ले।’ दमनक बोला-‘ठीक है, तू अभी यहीं बैठ। मैं अभय-वचन लेकर अभी आता हूं।” तब, दमनक पिंगलक के पास जाकर बोला-‘स्वामी ।
वह कोई साधारण जीव नहीं है, वह तो भगवान शिव का वाहक बैल है। मेरे पूछने पर उसने बताया कि उसे स्वयं भगवान शिव ने प्रसन्न होकर यहां यमुना तट पर भेजा है, हरी हरी घास चरने को।
वह तो कहता है कि भगवान ने उसे यह सारा वन खेलने और करने के लिए सौंप दिया है। पिंगलक ने दीर्घ श्वास खींचते हुए कहा-‘सच कहते हो दमनक। भगवान के आशीर्वाद के बिना कौन बैल है,
जो यहां इस वन में इतनी निर्भयता से घूम सके ! फिर, तुमने क्या उत्तर दिया ? ‘मैने उससे कहा कि इस वन में तो चंडिका वाहन रूपी शेर पिंगलक पहले से ही रहता है तुम भी उसके अतिथि बनकर रहो, उसके साय आनंद से विचरण करो, वह तुम्हारा स्वागत करेगा।’
फिर उसने क्या कहा?” “उसने यह बात मान ली स्वामी। वह बोला कि पहले अपने स्वामी के पास जाकर अभय-वचन ले आओ, तभी मैं वहां जाऊंगा।
अब आप जैसा आदेश दें, वैसा ही करूं।’ दमनक की बात सुनकर पिंगलक बहुत प्रसन्न हुआ और बोला-‘बहुत अच्छा कहा दमनक, तुमने बहुत अच्छा कहा।
मेरे मन की बात कह दी। अब उसे अभय वचन देकर शीघ्र मेरे पास ले आओ। संजीवक के पास जाते-जाते दमनक सोचने लगा स्वामी आज मुझ पर बहुत प्रसन्न है, बातों-ही-बातों में मैंने उन्हें प्रसन्न कर लिया है। आज मुझसे अधिक भाग्यवान कोई नहीं।’
दमनक ने संजीवक के पास पहुंचकर कहा-‘मित्र ! मेरे स्वामी ने तुम्हें अभय वचन दे दिया है। मेरे साथ चलो। किंतु याद रखना, उनके सामने अभिमान-भरी कोई बात न करना और न ही यह भूलना कि उनसे तुम्हें मैने ही मिलवाया है।
मेरे इस उपकार को याद रखते हुए मुझसे मित्रता निभाना। मैं भी तुम्हारे संकेतों पर राज चलाएंगे। हम दोनों मिलकर खूब आनंद की जिंदगी व्यतीत करेंगे।’
‘मैं ऐसा ही करूंगा मित्र।’ संजीवक ने सहमति जताई। इसी में तुम्हारा कल्याण भी है मित्र, दमनक ने कहा-‘क्योंकि जो व्यक्ति अधिकार के मद में पड़कर उत्तम,
मध्यम और अधम वर्ग के कर्मचारियों का ययोचित सम्मान नहीं करता, वह राजा का प्रिय होते हुए भी दन्तिल नाम के सेठ की भांति पतन के गर्त में गिर जाता है।’
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