तुम्हें दूर से देखा है Hindi romantic poetry by Amrit Sahu
उपहार तुम्हें मैं क्या दूं
मेरे पास नहीं है कोई ऐसा सामान
बस दूर से देखा है तुमको
पास आने का है एक अरमान
जब तुम घर से निकली
मैं तुम्हें ही देखता रहा
बिना झपकाए पलक
तुम्हें भी हुआ होगा थोड़ा सा शक
लगा मेरा दुख दर्द है जैसे मिट रहा
मिलते ही तुम्हारी एक झलक
होठों से यह मैं कह ना सकूं
मिट न जाए कहीं मेरा जुनून
मैं मृत जिस्म सा शांत पर
तुम हो जैसे मुझ में दौड़ता खून
मेरी आंखों से यह सब समझ लेना
क्योंकि यह इश्क मेरी कितना मासूम
तुम्हारी आंखों को देखकर
हुए दिल में कितनी हलचल
तुम शायद अनुमान ना लगा पाओ
पर बढ़ने लगी है धड़कन पल पल
ये लिखते वक्त कितनी बेचैनी
मैं जानता हूं और ये स्याही
फिर भी लिखता रहा
मंजिल को सोचकर
जैसे बल रहा कोई गुमनाम राही
अगर तुम्हें यह इंकार है
तो मैं दिल को समझा लूंगा कि
शायद तुमने पहले ही बुन लिया होगा
कोई दूसरा सपना
तो कैसे कहोगे तुम मुझ जैसे गैर को अपना
तुम तो यहीं रहोगी
शायद मैं यहां रुक ना पाऊं
किसी के रोके
आता जाता रहता मैं यहां
जैसे हो कोई पवन के झोंके
यदि तुम्हारी हां है तो
इसे छुपाना नहीं मन में
कह देना, देर न करना
नहीं तो ढूंढ ना पाओगी मुझे
इस नीले अनंत गगन में
तुम्हारे जवाब की ख्वाहिश में
मचल रहा मेरा सीना
मेरी भावनाएं तो बहुत है
पर शब्दों की है बस इतनी सीमा
तुमसे पहले ना कोई हुई है
न होगी कोई दूसरी हसीना
मैं तुम्हारी चाहत में भले
उदास रहूं पर तुम खुशी से जीना
पर कुछ ऐसा ना कह देना कि
यह टूट कर बिखर जाऊं अमृत की गरिमा
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