मक्खीचूस गीदड़ - preranadayak kahani (hindi moral story)
मक्खीचूस गीदड़ - funny moral story in hindi
जंगल में एक गीदड़ रहता था। वह बड़ा कंजूस था। वह कंजूसी अपने शिकार को खाने में किया करता था। जितने शिकार से दूसरा गीदड़ दो दिन काम चलाता, वह उतने ही शिकार को सात दिन तक खींचता। जैसे उसने एक खरगोश का शिकार किया।
पहले दिन वह एक ही कान खाता। बाकी बचाकर रखता। दूसरे दिन दूसरा कान खाता । ठीक वैसे जैसे कंजूस व्यक्ति पैसा घिस घिसकर खर्च करता है। गीदड़ अपने पेट की कंजूसी करता। इस चक्कर में प्रायः भूखा रह जाता। इसलिए दुर्बल भी बहुत हो गया था।
एक बार उसे एक मरा हुआ बारहसिंघा हिरण मिला। वह उसे खींचकर अपनी मांद में ले गया। उसने पहले हिरण के सींग खाने का फैसला किया ताकि मांस बचा रहे। कई दिन वह बस सींग चबाता रहा। इस बीच हिरण का मांस सड़ गया और वह केवल गिद्धों के खाने लायक रह गया। इस प्रकार मक्खीचूस गीदड प्रायः हंसी का पात्र बनता। जब वह बाहर निकलता तो दूसरे जीव उसका मरियल-सा शरीर देखते और कहते 'वह देखो, मक्खीचूस जा रहा है।
पर वह परवाह न करता। कंजूसों में यह आदत होती ही हैं। कंजूसों की अपने घर में भी खिल्ली उड़ती है, पर वह इसे अनसुना कर देते हैं।
उसी वन में एक शिकारी शिकार की तलाश में एक दिन आया। उसने एक सुअर को देखा और निशाना लगाकर तीर छोड़ा। तीर जंगली सुअर की कमर को बींधता हुआ शरीर में घुसा। क्रोधित सुअर शिकारी की ओर दौड़ा और उसने अपने नुकीले दंत शिकारी के पेट में घोंप दिए। शिकारी ओर शिकार दोनों मर गए।
तभी वहां मक्खीचूस गीदड़ आ निकला। वह् खुशी से उछल पड़ा। शिकारी व सुअर के मांस को कम से कम दो महीने चलाना है। उसने हिसाब लगाया।
'रोज थोड़ा-थोड़ा खाऊंगा।' वह बोला ।
तभी उसकी नजर पास ही पड़े धनुष पर पड़ी। उसने धनुष को सूंघा । धनुष की डोर कोनों पर चमड़ी की पट्टी कडी से बंधी थी। उसने सोचा 'आज तो इस चमड़ी की पट्टी को खाकर ही काम चलाऊंगा। मांस खर्च नहीं करूंगा। पूरा बचा लूंगा।'
निशाना लगाकर तीर छोड़ा। तीर जंगली सुअर की कमर को बींधता हुआ शरीर में क्रोधित घुसा। सुअर शिकारी की ओर दौड़ा और उसने अपने नुकीले दंत शिकारी के पेट में घोंप दिए। शिकारी ओर शिकार दोनों मर गए। +
तभी वहां मक्खीचूस गीदड़ आ निकला। वह् खुशी से उछल पड़ा। शिकारी व सुअर के मांस को कम से कम दो महीने चलाना है। उसने हिसाब लगाया।
'रोज थोड़ा-थोड़ा खाऊंगा।' वह बोला
तभी उसकी नजर पास ही पड़े धनुष पर पड़ी। उसने धनुष को सूंघा । धनुष की डोर कोनों पर चमड़ी की पट्टी कडी से बंधी थी। उसने सोचा 'आज तो इस चमड़ी की पट्टी को खाकर ही काम चलाऊंगा। मांस खर्च नहीं करूंगा। पूरा बचा लूंगा।'
ऐसा सोचकर वह धनुष का कोना मुंह में डाल पट्टी काटने लगा। ज्यों ही पट्टी कटी, डोर छूटी और धनुष की लकड़ी पट से सीधी हो गई। धनुष का कोना चटाक से गीदड़ के तालू में लगा और उसे चीरता हुआ। उसकी नाक तोड़कर बाहर निकला। मख्खीचूस गीदड़ वहीं मर गया।
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