रो रहा है मेरा गांव- Ro raha hai mera gaaw, poem on village in hindi
रो रहा है मेरा गांव - poem on village in hindi
दोस्तो, ये कविता गांव की बरबादी को बताती है, इस कविता को पढ़कर आपका मन व्यथित हो जायेगा। अगर आप अपने गांव को याद कर रहे हैं तो ये कविता सिर्फ आपके लिए है (village poem in hindi, hindi poem on village)
चारो तरफ दिखते है खंडहर , और सूखे खेत भी
सिसकियाँ लेती है चौखट , रो रहे है घर सभी ।।
गांव में प्रवेश करते ही , दिखती थी रौनक जहाँ
अब छतो की टूटती , पठाले दिखती है वहां ।।
मायूस घर की चौखटे है , मौन बैठी खिड़कियां
धीरे – धीरे दम तोड़ती हैं , अब घरो में बल्लियां ।।
कब ढहा वो बूढ़ा पीपल , छाओं देता था जो हर पल
उसके नीचे धारे का पानी , कितना मीठा कितना शीतल ।।
दूर तक छायी है चुप्पी , आज मेरे गांव में
घर – घर पे ताले लगे हैं , आज मेरे गांव में ।।
चौक व दीवारे जिनमे , गूंजती थी किलकारियां
चूहे उनमे कूदते है , चमगादड़ उड़ते यहाँ ।।
बच्चे, बूढ़े, औरते हैं , आदमियत के नाम पर
सब पलायन कर गए हैं , बस रोटी के नाम पर।।
खो गए मंगल गीत , खो गयी चौपाल भी
घर के आंगनों में दिखते , बेखौफ घूमते सियाल भी।।
गांव का देवता था, भूम्या , आज बड़ा लाचार है
गांव की हालत देखकर , रोता जार – जार है।।
सिसक – सिसक कर कह रहा था , गांव का बूढ़ा दरख़्त
उजड़ रहे है पहाड़ , संभलो अभी बचा है वक़्त।।
ना रहो तुम सदा , चाहो मेरे गांव में
कुछ वक़्त ज़रूर गुजारो , दोस्त मेरी छाओं में।।
तुमसे ही आबाद हूँ मैं , तुम ही मेरी जान हो
देख तुमको जी सकूंगा , तुम ही मेरे प्राण हो।।
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