वो खूबसूरत सफर - Wo khubsurat safar, Romantic hindi poem by amrit sahu
वो खूबसूरत सफर - Wo khubsurat safar, Romantic hindi poem by amrit sahu
राहो मे था मैं उस वक्त
मेरी मंजिल बहुत धुंधली थी
मेरा हमसफर भी तो नही था कोई
जब तुम मुझे नही मिली थी
जब पास मेरे बैठी तुम
वो एहसास कितना मधुर था
समां कितना खुशनुमा हो गया
थकान मुझसे कोसो दूर था
कोमल सा एक स्पर्श तुम्हारा
मन मे हलचल मचा गया
वो दिन मैं भूलूंगा नहीं
जैसे एक इतिहास रचा गया
घूमने का यूँ तो शौक है आपको
कभी चलेंगे आगे सितारों से
शांति भरा माहौल होगा वहाँ
बातें होंगी केवल इशारो से
कहने को तो हजारो बाते है
पर ये कलम कितना दुःख सहेगी
सामने कही तुम आ जाओ
शायद फिर भी ये जुबां चुप रहेगी
आँखे तुम्हारी पढ़ी है मैंने
जैसे तुमको मैं जान रहा
अजनबी हूँ मैं आपके लिए
इस बात का न मुझको ध्यान रहा
अंधेरे में रहने वालो को
रौशनी की जरूरत होती है
रूठना नही आप मुझसे कभी
कुछ गलतियाँ मासूम होती है
अमृत के इन बातो की
सदा साक्षी तुम रहोगी
तुम्हारे दिल में मैं, ना रह सकूँ शायद
पर तुम मेरे दिल मे हरदम रहोगी
Kavi - Amrit Sahu
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