Bageshwar Dham Dhirendra shastri controversy news: आरोप सही हुए तो धीरेंद्र शास्त्री को कितनी होगी सजा? जानिए अंधविश्वास फैलाने पर क्या कहता है कानून
Bageshwar Dham Dhirendra shastri controversy news: आरोप सही हुए तो धीरेंद्र शास्त्री को कितनी होगी सजा? जानिए अंधविश्वास फैलाने पर क्या कहता है कानून
MP News : महाराष्ट्र में 2013 में महाराष्ट्र मानव बलि और अन्य अमानवीय कृत्य की रोकथाम एवं उन्मूलन अधिनियम पारित किया गया. इसके जरिए राज्य में अमानवीय प्रथाओं, काला जादू आदि को प्रतिबंधित किया गया है.
मध्य प्रदेश के बागेश्वर धाम सरकार धीरेंद्र शास्त्री इस वक्त चर्चा में हैं. उन पर महाराष्ट्र के नागपुर की अंध श्रद्धा निर्मूलन समिति ने अंधविश्वास फैलाने का आरोप लगाया है.धीरेंद्र शास्त्री का दावा है कि अपनी दैवीय शक्तियों से वह लोगों के मन की बात पढ़ लेते हैं. उनकी समस्याओं का समाधान बताते हैं. धीरेंद्र शास्त्री के अनुयायी इसे चमत्कार बताते हैं. वहीं उनके विरोधियों का कहना है कि नागपुर में जब अंध श्रद्धा निर्मूलन समिति ने अपने दावों को साबित करने की चुनौती दी तो बाबा अंध श्रद्धा उन्मूलन कानून के डर कर रायपुर चले आए.समिति ने धीरेंद्र शास्त्री के खिलाफ पुलिस में शिकायत भी दर्ज कराई है.
आइए हम जानते हैं कि देश में अंध विश्वास फैलाने को लेकर कानून क्या कहता है? अगर कोई इसका दोषी पाया जाता है तो उसे कितनी सजा हो सकती है? दोषी के खिलाफ क्या-क्या कार्रवाई हो सकती है? महाराष्ट्र का अंध श्रद्धा उन्मूलन कानून क्या है?
अंधविश्वास फैलाने के खिलाफ कानून
भारत में अभी अंधविश्वास को लेकर कोई विशेष केंद्रीय कानून नहीं है. लोकसभा में 2016 में डायन-शिकार निवारण विधेयक लाया गया था. लेकिन पारित नहीं हो सका. देश में अलग-अलग कानून हैं,जिसके जरिए इसपर रोक लगाई जा सकती है.
अंधविश्वास की वजह से हत्या की स्थिति में भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) की धाराओं में कार्रवाई हो सकती है. भारतीय संविधान का अनुच्छेद 51A (H) में भारतीय नागरिकों के लिए वैज्ञानिक सोच,मानवतावाद और सुधार की भावना को विकसित करना एक मौलिक कर्त्तव्य बनाता है. वहीं अजूबा या दिव्य तरीके से किसी बीमारी के इलाज का दावा करने वालों पर ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज एक्ट, 1954 के तहत कार्रवाई का प्रावधान है. इसके जरिए भी अंधविश्वास फैलाने पर रोक लगाई जा सकती है.
किन राज्यों ने बनाए हैं कानून
बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा, राजस्थान, असम, महाराष्ट्र और कर्नाटक में अंधविश्वास को रोकने के लिए कानून बना है. बिहार पहला राज्य था जिसने जादू-टोना रोकने, एक महिला को डायन के रूप में चिह्नित करने और अत्याचार, अपमान और महिलाओं की हत्या को रोकने हेतु कानून बनाया था. इसे 'द प्रिवेंशन ऑफ विच (डायन) प्रैक्टिस एक्ट' नाम दिया गया. यह कानून अक्तूबर 1999 से प्रभावी है.
अंधविस्वास और जादू-टोना के खिलाफ महाराष्ट्र में लंबे समय तक आंदोलन हुआ. इसमें कई लोगों की जानें भी गईं. इसके बाद वहां 2013 में महाराष्ट्र मानव बलि और अन्य अमानवीय कृत्य की रोकथाम एवं उन्मूलन अधिनियम पारित किया गया. इसके जरिए राज्य में अमानवीय प्रथाओं, काला जादू आदि को प्रतिबंधित किया गया. इस कानून का एक खंड विशेष रूप से 'godman’ (स्वयंभू भगवान या उनका अवतार) के दावों से संबंधित है. यह उनके लिए है जो दावा करते हैं कि उनके पास अलौकिक शक्तियां हैं. नागपुर में धीरेंद्र शास्त्री पर इसी कानून के तहत कार्रवाई की मांग हो रही है.
महाराष्ट्र मानव बलि और अन्य अमानवीय कृत्य की रोकथाम एवं उन्मूलन अधिनियम में कुल 12 क्लॉज हैं. ये अलग-अलग अपराधों को चिन्हित करते हैं. अगर कोई इसमें दोषी पाया जाता है तो उसे कम से कम छह महीने और ज्यादा से ज्यादा सात साल तक की सजा का प्रावधान है. इसके अलावा पांच हजार से 50 हजार रुपये तक के जुर्माने का भी प्रावधान है. ये अपराध गैर-जमानती और संज्ञेय हैं.
Post a Comment