Scientist have discovered a new type of blood group - वैज्ञानिकों ने नए ब्लड ग्रुप का पता लगाया, खुश होकर क्यों कह रहे हैं नए ग्रह की खोज करने जैसा?
वैज्ञानिकों ने नए ब्लड ग्रुप का पता लगाया, खुश होकर क्यों कह रहे हैं नए ग्रह की खोज करने जैसा?
Scientist have discovered a new type of blood group
वैज्ञानिकों ने नए ब्लड ग्रुप की खोज की है। इसे उन्होंने Er नाम दिया है। यह 44वां ज्ञात ब्लड ग्रुप है। वे इसे नए ग्रह की खोज जैसा बता रहे हैं। करीब चार दशक से वैज्ञानिक इसकी खोज में लगे थे। अब उन्हें इसके बारे में पता लगा है। यह खोज वैज्ञानिकों को खून से जुड़ी कई जटिल समस्याओं का इलाज करने में मदद करेगी।
ज्यादातर लोग सिर्फ चार ही ब्लड ग्रुप्स के बारे में जानते हैं। इनमें A, B, AB और O शामिल हैं। यह और बात है कि दर्जनों अन्य ब्लड ग्रुप्स भी मौजूद हैं। वैज्ञानिकों ने हाल में एक और नए ब्लड ग्रुप का पता लगाया है। उन्होंने इसका नाम Er दिया है। यह 44वां ज्ञात ब्लड ग्रुप का प्रकार है। वैज्ञानिकों ने इसे बड़ी उपलब्धि बताया है। उनके लिए यह किसी ग्रह की खोज करने जैसा है। उन्हें उम्मीद है कि यह खोज खून में होने वाली गड़बड़ियों का पता लगाने और उनका ट्रीटमेंट करने में मदद करेगी। इससे खून से जुड़ी कुछ जटिल बीमारियों का उपचार करने में भी मदद मिलेगी। नवजात शिशुओं और गर्भ में होने वाली बीमारियों के ट्रीटमेंट में यह खोज खासतौर से अहम साबित होगी।
वैज्ञानिकों को 1982 में सबसे पहले Er ब्लड टाइप के संकेत देखने को मिले थे। लेकिन, टेक्नोलॉजी की सीमाओं के कारण वह इस दिशा में बहुत ज्यादा आगे नहीं बढ़ सके थे। चार दशकों के अध्ययन के बाद इसे खोज लिया गया है। ब्रिटेन के वैज्ञानिकों ने इसका पता लगाया है।
ब्लड ग्रुप टाइप का पता कैसे लगाते हैं? How do scientists find the blood group?
यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिसल के मुताबिक, खून के प्रकार को लाल रक्त कोशिकाओं पर प्रोटीन की उपस्थिति या अनुपस्थिति के आधार पर तय किया जाता है। कटिंग-एज डीएनए सीक्वेंसिंग और जीन एडिटिंग टेक्नीक के जरिये यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने Piezo1 नाम के प्रोटीन की पहचान की है। यह Er ब्लड टाइप के लिए मार्कर है। Piezo1 सेहत और बीमारी दोनों में अहम भूमिका निभाता है।
ब्लड ग्रुप का पता लगाना क्यों है जरूरी? Why is it necessary to find a blood group?
यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ बायोकेमिस्ट्री में सीनियर रिसर्चर टिम सैचवेल ने इस स्टडी को अहम करार दिया है। उन्होंने कहा है कि यह उदाहरण है कि कैसे नई टेक्नोलॉजी को ज्यादा पारंपरिक तरीकों के साथ कम्बाइन किया जा सकता है। इसके जरिये उन सवालों का जवाब तलाशने में मदद मिलेगी जो लंबे समय से पहेली बने हुए हैं।
वैज्ञानिकों का कहना है कि ब्लड प्रकार के जेनेटिक मेकअप को समझना जरूरी है। इससे ब्लड टाइप टेस्टिंग को विकसित करने में मदद मिलती है। यह डॉक्टरों की उन लोगों की ज्यादा अच्छी देखरेख करने में मदद करेगा जो रेर ब्लड ग्रुप वाले हैं।
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