Akbar Birbal hindi stories : अकबर- बीरबल की प्रसिद्ध कहानियाँ।
Akbar Birbal hindi stories : अकबर- बीरबल की प्रसिद्ध कहानियाँ।
1- जादुई गधा(Akbar Birbal stories in hindi)
एक बार बादशाह अकबर (Akbar) ने बेगम साहिबा के जन्मदिन के अवसर पर उन्हें एक बेशकीमती हार दिया. बादशाह अकबर का उपहार होने के कारण बेगम साहिबा को वह हार अतिप्रिय था. उन्होंने उसे बहुत संभालकर एक संदूक में रखा था.
एक दिन श्रृंगार करते समय जब हार निकालने के लिए बेगम साहिबा ने संदूक खोला, तो उन्होंने वह नदारत पाया.
घबराते हुए वो फ़ौरन अकबर के पास पहुँची और उन्हें अपना बेशकीमती हार खो जाने की जानकारी थी. अकबर ने उन्हें वह हार कक्ष में अच्छी तरह ढूंढने को कहा. लेकिन वह हार नहीं मिला. अब अकबर और बेगम साहिबा को यकीन हो गया कि हो न हो, उस शाही हार की चोरी हो गई है.
अकबर ने तुरंत बीरबल को बुलवा भेजा और सारी बात बताकर शाही हार खोजने की ज़िम्मेदारी उसे सौंप दी.
बीरबल (Birbal) ने बिना देर किये राजमहल के सभी सेवक-सेविकाओं को दरबार में हाज़िर होने का फ़रमान ज़ारी करवा दिया.
कुछ ही देर में दरबार लग चुका था. अकबर अपनी बेगम साहिबा के साथ शाही तख़्त पर विराजमान थे. सभी सेवक-सेविकायें दरबार में हाज़िर थे. बस बीरबल नदारत था.
सब बीरबल के आने का इंतज़ार करने लगे. लेकिन दो घंटे बीत जाने पर भी बीरबल नहीं आया. बीरबल की इस हरक़त पर अकबर आग-बबूला होने लगे.
दरबार में बैठने का कोई औचित्य न देख वे बेगम साहिबा के साथ उठकर वहाँ से जाने लगे. ठीक उसी वक़्त बीरबल ने दरबार में प्रवेश किया. उसके साथ एक गधा भी था.
विलंब के लिए अकबर से माफ़ी मांगते हुए वह बोला, “जहाँपनाह! माफ़ कीजियेगा. इस गधे को खोजने में मुझे समय लग गया.”
सबकी समझ के परे था कि बीरबल अपने साथ वो गधा दरबार में लेकर क्यों आया है?
बीरबल सबकी जिज्ञासा शांत करते हुए बोला, “ये कोई साधारण गधा नहीं है. ये एक जादुई गधा (Jadui Gadha) है. मैं ये गधा यहाँ इसलिए लाया हूँ, ताकि ये शाही हार के चोर का नाम बता सके.”
बीरबल की बात अब भी किसी के पल्ले नहीं पड़ रही थी. बीरबल कहने लगा, “मैं इस जादुई गधे को पास ही के एक कक्ष में ले जाकर खड़ा कर रहा हूँ. एक-एक कर सभी सेवक-सेविकाओं को उस कक्ष में जाना होगा और इस गधे की पूंछ पकड़कर जोर से चिल्लाना होगा कि उसने चोरी नहीं की है. ध्यान रहे आप सबकी आवाज़ बाहर सुनाई पड़नी चाहिए. अंत में ये गधा बताएगा कि चोर कौन है?”
बीरबल गधे को दरबार से लगे एक कक्ष में छोड़ आया और कतार बनाकर सभी सेवक-सेविका उस कक्ष में जाने लगे. सबके कक्ष में जाने के बाद बाहर ज़ोर से आवाज़ आती – “मैंने चोरी नहीं की है.”
जब सारे सेवक-सेविकाओं ने ऐसा कर लिया, तो बीरबल गधे को बाहर ले आया. अब सबकी निगाहें गधे पर थी.
लेकिन गधे को एक ओर खड़ा कर बीरबल एक विचित्र हरक़त करने लगा. वह सभी सेवक-सेविकाओं के पास जाकर उनसे हाथ आगे करने को कहता और उसे सूंघता. बादशाह अकबर और बेगम सहित सभी हैरान थे कि आखिर बीरबल ये कर क्या रहा है. तभी बीरबल एक सेवक का हाथ पकड़कर जोर से बोला, “जहाँपनाह! ये है शाही हार का चोर.”
“तुम इतने यकीन से ऐसा कैसे कह सकते हो बीरबल? क्या इस जादुई गधे ने तुम्हें इस चोर का नाम बताया है?” आश्चर्यचकित अकबर ने बीरबल से पूछा.
बीरबल बोला, “नहीं हुज़ूर! ये कोई जादुई गधा (Jadui Gadha) नहीं है. ये एक साधारण गधा है. मैंने बस इसकी पूंछ पर एक खास किस्म का इत्र लगा दिया था. जब सारे सेवक-सेविकाओं ने इसकी पूंछ पकड़ी, तो उनके हाथ में उस इत्र की ख़ुशबू आ गई. लेकिन इस चोर ने डर के कारण गधे की पूंछ पकड़ी ही नहीं. वह कक्ष में जाकर बस जोर से चिल्लाकर बाहर आ गया. इसलिए इसके हाथ में उस इत्र की ख़ुशबू नहीं आ पाई. इससे सिद्ध होता है कि यही चोर है.”
उस चोर को दबिश देकर शाही हार बरामद कर लिया गया और उसे कठोर सजा सुनाई गई. इस बार बीरबल की अक्लमंदी की बेगम साहिबा भी कायल हो गई और उन्होंने अकबर से कहकर बीरबल को कई उपहार दिलवाए.
Akbar Birbal Hindi Story
2- बैल का दूध
हमेशा की तरह एक दिन मौका पाकर दरबारी बीरबल (Birbal) के खिलाफ़ बादशाह अकबर के कान भरने लगे. वे कहने लगे, “जहाँपनाह! बीरबल स्वयं को कुछ ज्यादा ही अक्लमंद समझता है. यदि वह इतना ही अक्लमंद है, तो उसे कहिये कि वह बैल का दूध लेकर आये.”
दरबारियों की बातों में आकर अकबर (Akbar) ने बीरबल की अक्लमंदी की परीक्षा लेने की सोची. बीरबल उस समय दरबार में उपस्थित नहीं था. जब वह दरबार पहुँचा, तो अकबर बोले, “बीरबल! क्या तुम मानते हो कि दुनिया में कोई कार्य असंभव नहीं?”
“जी हुज़ूर!” बीरबल में उत्तर दिया.
“तो ठीक है. हम तुम्हें एक काम दे रहे हैं. तुम्हें उसे दो दिवस के भीतर करना होगा.”
“फ़रमाइये हुज़ूर! आपके हर हुक्म की तामीली मेरा कर्त्तव्य है.” बीरबल सिर झुककर अदब से बोला.
“जाओ जाकर बैल (Ox) का दूध लेकर आओ.” अकबर ने आदेश दिया.
आदेश सुनकर बीरबल भौंचक्का रह गया. इधर दरबारी मन ही मन बड़े प्रसन्न हुए. वे जानते थे कि यह कार्य असंभव है क्योंकि दूध गाय देती है, बैल नहीं.
“क्यों बीरबल तुमने कोई जवाब नहीं दिया?” अकबर बोले.
बीरबल क्या कहता? वह बहस करने का समय नहीं था. हामी भरकर वह घर लौट आया.
घर आकर उसने गहन सोच-विचार किया. अपनी पत्नि और पुत्री से भी चर्चा की. आखिरकार सबने मिलकर एक उपाय निकाल ही लिया.
उस रात बीरबल की पुत्री अकबर के महल के पीछे स्थित कुएं पर गई और पीट-पीटकर कपड़े धोने लगी. अकबर के महल की खिड़की उस कुएं की ओर खुलती थी. जोर-जोर से कपड़े पीटने की आवाज़ सुनकर उनकी नींद खुल गई. खिड़की से झाँकने पर उन्हें एक लड़की कुएं पर कपड़े धोती हुई दिखाई पड़ी.
अकबर ने वहीँ से चिल्लाकर उस लड़की से पूछा, “बच्ची! इतनी रात गए कपड़े क्यों धो रही हो?”
बीरबल की पुत्री बोली, “हुज़ूर! मेरी माता घर पर नहीं है. वे कुछ महीनों से अपने मायके में हैं. उनकी अनुपस्थिति में आज मेरे पिता ने एक बच्चे को जन्म दिया. दिन-भर मुझे उनकी सेवा-सुश्रुषा करनी पड़ी. कपड़े धोने का समय ही नहीं पाया. इसलिए रात में कपड़े धो रही हूँ.”
“कैसी विचित्र बात कर रही हूँ बच्ची? आदमी बच्चे पैदा करते हैं क्या?” अकबर कुछ नाराज़गी में बोले.
“करते हैं हुज़ूर! जब बैल दूध दे सकता है, तो आदमी भी बच्चे पैदा कर सकते हैं.” बीरबल की पुत्री ने उत्तर दिया.
ये सुनना था कि अकबर की नाराज़गी हवा हो गई और वे पूछ बैठे, “बच्ची, कौन हो तुम?”
“हुज़ूर, ये मेरी पुत्री है.” पेड़ के पीछे छुपे बीरबल ने अकबर के सामने आकर उत्तर दिया.
“ओह, तो ये तुम्हारा स्वांग था.” अकबर मुस्कुराते हुए बोले.
“गुस्ताख़ी माफ़ हुज़ूर और कोई रास्ता भी नहीं था अपनी बात समझाने का.” बीरबल अकबर की नींद में खलल डालने के लिए क्षमा मांगते हुए बोला.
इधर अकबर भी बीरबल की अक्लमंदी का लोहा मान गए. अगले दिन रात का पूरा वृतांत दरबारियों को सुनाते हुए उन्होंने बीरबल को उसकी अक्लमंदी के लिए सोने का हार इनाम में दिया. दरबारी हमेशा की तरह जल-भुन कर रह गए.
Akbar Birbal stories in hindi
3 - सोने का खेत
बादशाह अकबर के शयनकक्ष में सफाई करते हुए एक सेवक के हाथ से गिरकर उनका पसंदीदा फूलदान टूट गया. फूलदान टूटने पर सेवक घबरा गया. उसने चुपचाप फूलदान के टुकड़े समेटे और उन्हें बाहर फेंक आया.
एक दिन श्रृंगार करते समय जब हार निकालने के लिए बेगम साहिबा ने संदूक खोला, तो उन्होंने वह नदारत पाया.
घबराते हुए वो फ़ौरन अकबर के पास पहुँची और उन्हें अपना बेशकीमती हार खो जाने की जानकारी थी. अकबर ने उन्हें वह हार कक्ष में अच्छी तरह ढूंढने को कहा. लेकिन वह हार नहीं मिला. अब अकबर और बेगम साहिबा को यकीन हो गया कि हो न हो, उस शाही हार की चोरी हो गई है.
अकबर ने तुरंत बीरबल को बुलवा भेजा और सारी बात बताकर शाही हार खोजने की ज़िम्मेदारी उसे सौंप दी.
बीरबल (Birbal) ने बिना देर किये राजमहल के सभी सेवक-सेविकाओं को दरबार में हाज़िर होने का फ़रमान ज़ारी करवा दिया.
कुछ ही देर में दरबार लग चुका था. अकबर अपनी बेगम साहिबा के साथ शाही तख़्त पर विराजमान थे. सभी सेवक-सेविकायें दरबार में हाज़िर थे. बस बीरबल नदारत था.
सब बीरबल के आने का इंतज़ार करने लगे. लेकिन दो घंटे बीत जाने पर भी बीरबल नहीं आया. बीरबल की इस हरक़त पर अकबर आग-बबूला होने लगे.
दरबार में बैठने का कोई औचित्य न देख वे बेगम साहिबा के साथ उठकर वहाँ से जाने लगे. ठीक उसी वक़्त बीरबल ने दरबार में प्रवेश किया. उसके साथ एक गधा भी था.
विलंब के लिए अकबर से माफ़ी मांगते हुए वह बोला, “जहाँपनाह! माफ़ कीजियेगा. इस गधे को खोजने में मुझे समय लग गया.”
सबकी समझ के परे था कि बीरबल अपने साथ वो गधा दरबार में लेकर क्यों आया है?
बीरबल सबकी जिज्ञासा शांत करते हुए बोला, “ये कोई साधारण गधा नहीं है. ये एक जादुई गधा (Jadui Gadha) है. मैं ये गधा यहाँ इसलिए लाया हूँ, ताकि ये शाही हार के चोर का नाम बता सके.”
बीरबल की बात अब भी किसी के पल्ले नहीं पड़ रही थी. बीरबल कहने लगा, “मैं इस जादुई गधे को पास ही के एक कक्ष में ले जाकर खड़ा कर रहा हूँ. एक-एक कर सभी सेवक-सेविकाओं को उस कक्ष में जाना होगा और इस गधे की पूंछ पकड़कर जोर से चिल्लाना होगा कि उसने चोरी नहीं की है. ध्यान रहे आप सबकी आवाज़ बाहर सुनाई पड़नी चाहिए. अंत में ये गधा बताएगा कि चोर कौन है?”
बीरबल गधे को दरबार से लगे एक कक्ष में छोड़ आया और कतार बनाकर सभी सेवक-सेविका उस कक्ष में जाने लगे. सबके कक्ष में जाने के बाद बाहर ज़ोर से आवाज़ आती – “मैंने चोरी नहीं की है.”
जब सारे सेवक-सेविकाओं ने ऐसा कर लिया, तो बीरबल गधे को बाहर ले आया. अब सबकी निगाहें गधे पर थी.
लेकिन गधे को एक ओर खड़ा कर बीरबल एक विचित्र हरक़त करने लगा. वह सभी सेवक-सेविकाओं के पास जाकर उनसे हाथ आगे करने को कहता और उसे सूंघता. बादशाह अकबर और बेगम सहित सभी हैरान थे कि आखिर बीरबल ये कर क्या रहा है. तभी बीरबल एक सेवक का हाथ पकड़कर जोर से बोला, “जहाँपनाह! ये है शाही हार का चोर.”
“तुम इतने यकीन से ऐसा कैसे कह सकते हो बीरबल? क्या इस जादुई गधे ने तुम्हें इस चोर का नाम बताया है?” आश्चर्यचकित अकबर ने बीरबल से पूछा.
बीरबल बोला, “नहीं हुज़ूर! ये कोई जादुई गधा (Jadui Gadha) नहीं है. ये एक साधारण गधा है. मैंने बस इसकी पूंछ पर एक खास किस्म का इत्र लगा दिया था. जब सारे सेवक-सेविकाओं ने इसकी पूंछ पकड़ी, तो उनके हाथ में उस इत्र की ख़ुशबू आ गई. लेकिन इस चोर ने डर के कारण गधे की पूंछ पकड़ी ही नहीं. वह कक्ष में जाकर बस जोर से चिल्लाकर बाहर आ गया. इसलिए इसके हाथ में उस इत्र की ख़ुशबू नहीं आ पाई. इससे सिद्ध होता है कि यही चोर है.”
उस चोर को दबिश देकर शाही हार बरामद कर लिया गया और उसे कठोर सजा सुनाई गई. इस बार बीरबल की अक्लमंदी की बेगम साहिबा भी कायल हो गई और उन्होंने अकबर से कहकर बीरबल को कई उपहार दिलवाए.
Akbar Birbal Hindi Story
2- बैल का दूध
हमेशा की तरह एक दिन मौका पाकर दरबारी बीरबल (Birbal) के खिलाफ़ बादशाह अकबर के कान भरने लगे. वे कहने लगे, “जहाँपनाह! बीरबल स्वयं को कुछ ज्यादा ही अक्लमंद समझता है. यदि वह इतना ही अक्लमंद है, तो उसे कहिये कि वह बैल का दूध लेकर आये.”
दरबारियों की बातों में आकर अकबर (Akbar) ने बीरबल की अक्लमंदी की परीक्षा लेने की सोची. बीरबल उस समय दरबार में उपस्थित नहीं था. जब वह दरबार पहुँचा, तो अकबर बोले, “बीरबल! क्या तुम मानते हो कि दुनिया में कोई कार्य असंभव नहीं?”
“जी हुज़ूर!” बीरबल में उत्तर दिया.
“तो ठीक है. हम तुम्हें एक काम दे रहे हैं. तुम्हें उसे दो दिवस के भीतर करना होगा.”
“फ़रमाइये हुज़ूर! आपके हर हुक्म की तामीली मेरा कर्त्तव्य है.” बीरबल सिर झुककर अदब से बोला.
“जाओ जाकर बैल (Ox) का दूध लेकर आओ.” अकबर ने आदेश दिया.
आदेश सुनकर बीरबल भौंचक्का रह गया. इधर दरबारी मन ही मन बड़े प्रसन्न हुए. वे जानते थे कि यह कार्य असंभव है क्योंकि दूध गाय देती है, बैल नहीं.
“क्यों बीरबल तुमने कोई जवाब नहीं दिया?” अकबर बोले.
बीरबल क्या कहता? वह बहस करने का समय नहीं था. हामी भरकर वह घर लौट आया.
घर आकर उसने गहन सोच-विचार किया. अपनी पत्नि और पुत्री से भी चर्चा की. आखिरकार सबने मिलकर एक उपाय निकाल ही लिया.
उस रात बीरबल की पुत्री अकबर के महल के पीछे स्थित कुएं पर गई और पीट-पीटकर कपड़े धोने लगी. अकबर के महल की खिड़की उस कुएं की ओर खुलती थी. जोर-जोर से कपड़े पीटने की आवाज़ सुनकर उनकी नींद खुल गई. खिड़की से झाँकने पर उन्हें एक लड़की कुएं पर कपड़े धोती हुई दिखाई पड़ी.
अकबर ने वहीँ से चिल्लाकर उस लड़की से पूछा, “बच्ची! इतनी रात गए कपड़े क्यों धो रही हो?”
बीरबल की पुत्री बोली, “हुज़ूर! मेरी माता घर पर नहीं है. वे कुछ महीनों से अपने मायके में हैं. उनकी अनुपस्थिति में आज मेरे पिता ने एक बच्चे को जन्म दिया. दिन-भर मुझे उनकी सेवा-सुश्रुषा करनी पड़ी. कपड़े धोने का समय ही नहीं पाया. इसलिए रात में कपड़े धो रही हूँ.”
“कैसी विचित्र बात कर रही हूँ बच्ची? आदमी बच्चे पैदा करते हैं क्या?” अकबर कुछ नाराज़गी में बोले.
“करते हैं हुज़ूर! जब बैल दूध दे सकता है, तो आदमी भी बच्चे पैदा कर सकते हैं.” बीरबल की पुत्री ने उत्तर दिया.
ये सुनना था कि अकबर की नाराज़गी हवा हो गई और वे पूछ बैठे, “बच्ची, कौन हो तुम?”
“हुज़ूर, ये मेरी पुत्री है.” पेड़ के पीछे छुपे बीरबल ने अकबर के सामने आकर उत्तर दिया.
“ओह, तो ये तुम्हारा स्वांग था.” अकबर मुस्कुराते हुए बोले.
“गुस्ताख़ी माफ़ हुज़ूर और कोई रास्ता भी नहीं था अपनी बात समझाने का.” बीरबल अकबर की नींद में खलल डालने के लिए क्षमा मांगते हुए बोला.
इधर अकबर भी बीरबल की अक्लमंदी का लोहा मान गए. अगले दिन रात का पूरा वृतांत दरबारियों को सुनाते हुए उन्होंने बीरबल को उसकी अक्लमंदी के लिए सोने का हार इनाम में दिया. दरबारी हमेशा की तरह जल-भुन कर रह गए.
Akbar Birbal stories in hindi
3 - सोने का खेत
बादशाह अकबर के शयनकक्ष में सफाई करते हुए एक सेवक के हाथ से गिरकर उनका पसंदीदा फूलदान टूट गया. फूलदान टूटने पर सेवक घबरा गया. उसने चुपचाप फूलदान के टुकड़े समेटे और उन्हें बाहर फेंक आया.
अकबर जब शयनकक्ष में आये, तो उन्हें अपना मनपसंद फूलदान नदारत दिखा. उन्होंने सेवक को बुलाकर उसके बारे में पूछा, तो डर के मारे सेवक ने झूठ कह दिया, “जहाँपनाह मैं वह फूलदान साफ़ करने घर ले गया था. इस वक़्त वो वहीं है.”
अकबर ने सेवक को तुरंत वह फूलदान घर जाकर लाने का आदेश दे दिया. यह आदेश पाकर सेवक के पसीने छूटने लगे. बात छुपाने का कोई औचित्य ना दे उसने अकबर को सब कुछ सच-सच बता दिया और हाथ जोड़कर माफ़ी मांगने लगा.
अकबर फूलदान टूटने की बात पर तो उतने नाराज़ नहीं हुए, लेकिन उन्हें सेवक का झूठ बोलना हज़म नहीं हुआ और उन्होंने उसे फांसी की सजा सुना दी. सेवक गिड़गिड़ाता रहा. लेकिन अकबर ने उसकी एक न सुनी.
अगले दिन अकबर ने दरबार में इस विषय को चर्चा का मुद्दा बनाया और दरबारियों से पूछा, “क्या आपमें से किसी ने कभी झूठ बोला है?”
सारे दरबारियों ने एक स्वर में इंकार कर दिया. जब अकबर ने बीरबल से पूछा, तो बीरबल बोला, “जहाँपनाह! हर इंसान कभी ना कभी झूठ बोलता है. मैंने भी बोला है. मुझे लगता है कि जिस झूठ से किसी को नुकसान न पहुँचे, उसे बोलने में कोई बुराई नहीं है.”
बीरबल की बात सुनकर अकबर गुस्सा हो गए. उन्होंने उसे फांसी की सजा तो नहीं सुनाई, किंतु उसे अपने दरबार से निकाल दिया. बीरबल तुरंत दरबार छोड़कर चला गया. उसे अपनी चिंता नहीं थी, किंतु बिना बात के सेवक का फांसी पर चढ़ जाना उसे गंवारा नहीं था.
वह उसे बचाने की युक्ति सोचने लगा. कुछ सोच-विचार उपरांत उसने घर की जगह सुनार की दुकान की राह पकड़ ली. सुनार को उसने सोने से धान की बाली बनाने कहा.
अगली सुबह सुनार ने बीरबल को सोने की बनी धान की बाली बनाकर दे दी, जिसे लेकर बीरबल अकबर के दरबार पहुँचा. दरबार से निकाले जाने के बाद भी वहाँ आने की बीरबल की हिमाकत देखकर अकबर नाराज़ हुए. लेकिन बीरबल ने उन्हें अपनी बात सुनने के लिए किसी तरह राज़ी कर लिया.
वह सोने की बनी धान की बाली अकबर को दिखाते हुए बोले, “जहाँपनाह! एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण बात आपको बतानी थी. इसलिए मुझे यहाँ आना पड़ा. कल शाम घर जाते समय रास्ते में मेरी मुलाकात एक सिद्ध महात्मा से हुई. उन्होंने मुझे ये सोने की धान की बाली देकर कहा कि किसी उपजाऊ भूमि में इसे लगा देना. इससे उस खेत में सोने की फ़सल होगी. मैंने एक उपजाऊ भूमि खोज ली है. मैं चाहता हूँ कि सभी दरबारी और आप भी इसे लगाने उस खेत में चलें. आखिर देखें तो सही कि महात्मा की कही बात सच है या नहीं.”
अकबर बीरबल की बात मान गए और दूसरे दिन एक नियत समय पर खेत में पहुँचने के लिए दरबारियों को आदेशित कर दिया.
अगले दिन सभी नियत समय पर खेत पर पहुँचे. अकबर ने बीरबल को सोने से बना धान का पौधा खेत में लगाने को कहा. लेकिन बीरबल ने इंकार करते हुए कहा, “जहाँपनाह! महात्मा ने यह पौधा देते हुए मुझे निर्देश दिया था कि जिस व्यक्ति ने कभी झूठ ना बोला हो, उसके द्वारा लगाने पर ही खेत में सोने की फ़सल होगी. इसलिए मैं तो यह पौधा लगा नहीं सकता. कृपया आप दरबारियों में से किसी को यह पौधा लगाने का आदेश दे दीजिये.”
अकबर ने जब दरबारियों से धान का वह पौधा लगाने कहा, तो कोई सामने नहीं आया. अकबर समझ गए कि सभी ने कभी ना कभी झूठ बोला है. तब बीरबल ने वह पौधा अकबर के हाथ में दे दिया और बोला, “जहाँपनाह, यहाँ तो कोई भी सच्चा नहीं है. इसलिए ये पौधा आप ही लगायें.”
लेकिन अकबर भी वह पौधा लेने में हिचकने लगे और बोले, ”बचपन में हमने भी झूठ बोला है. कब ये याद नहीं, पर बोला है. इसलिए हम भी यह पौधा नहीं लगा सकते.”
यह सुनने के बाद बीरबल मुस्कुराते हुए बोला, “जहाँपनाह, इस पौधे को मैंने सुनार से बनवाया है. मेरा उद्देश्य मात्र आपको यह समझाना था कि दुनिया में लोग कभी न कभी झूठ बोलते ही हैं. जिस झूठ से किसी का बुरा ना हो, वह झूठ झूठ नहीं है.”
अकबर बीरबल की बात समझ गए थे. उन्होंने उसे वापस दरबार में स्थान दे दिया और सेवक की फांसी की सजा माफ़ कर दी.
अकबर ने सेवक को तुरंत वह फूलदान घर जाकर लाने का आदेश दे दिया. यह आदेश पाकर सेवक के पसीने छूटने लगे. बात छुपाने का कोई औचित्य ना दे उसने अकबर को सब कुछ सच-सच बता दिया और हाथ जोड़कर माफ़ी मांगने लगा.
अकबर फूलदान टूटने की बात पर तो उतने नाराज़ नहीं हुए, लेकिन उन्हें सेवक का झूठ बोलना हज़म नहीं हुआ और उन्होंने उसे फांसी की सजा सुना दी. सेवक गिड़गिड़ाता रहा. लेकिन अकबर ने उसकी एक न सुनी.
अगले दिन अकबर ने दरबार में इस विषय को चर्चा का मुद्दा बनाया और दरबारियों से पूछा, “क्या आपमें से किसी ने कभी झूठ बोला है?”
सारे दरबारियों ने एक स्वर में इंकार कर दिया. जब अकबर ने बीरबल से पूछा, तो बीरबल बोला, “जहाँपनाह! हर इंसान कभी ना कभी झूठ बोलता है. मैंने भी बोला है. मुझे लगता है कि जिस झूठ से किसी को नुकसान न पहुँचे, उसे बोलने में कोई बुराई नहीं है.”
बीरबल की बात सुनकर अकबर गुस्सा हो गए. उन्होंने उसे फांसी की सजा तो नहीं सुनाई, किंतु उसे अपने दरबार से निकाल दिया. बीरबल तुरंत दरबार छोड़कर चला गया. उसे अपनी चिंता नहीं थी, किंतु बिना बात के सेवक का फांसी पर चढ़ जाना उसे गंवारा नहीं था.
वह उसे बचाने की युक्ति सोचने लगा. कुछ सोच-विचार उपरांत उसने घर की जगह सुनार की दुकान की राह पकड़ ली. सुनार को उसने सोने से धान की बाली बनाने कहा.
अगली सुबह सुनार ने बीरबल को सोने की बनी धान की बाली बनाकर दे दी, जिसे लेकर बीरबल अकबर के दरबार पहुँचा. दरबार से निकाले जाने के बाद भी वहाँ आने की बीरबल की हिमाकत देखकर अकबर नाराज़ हुए. लेकिन बीरबल ने उन्हें अपनी बात सुनने के लिए किसी तरह राज़ी कर लिया.
वह सोने की बनी धान की बाली अकबर को दिखाते हुए बोले, “जहाँपनाह! एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण बात आपको बतानी थी. इसलिए मुझे यहाँ आना पड़ा. कल शाम घर जाते समय रास्ते में मेरी मुलाकात एक सिद्ध महात्मा से हुई. उन्होंने मुझे ये सोने की धान की बाली देकर कहा कि किसी उपजाऊ भूमि में इसे लगा देना. इससे उस खेत में सोने की फ़सल होगी. मैंने एक उपजाऊ भूमि खोज ली है. मैं चाहता हूँ कि सभी दरबारी और आप भी इसे लगाने उस खेत में चलें. आखिर देखें तो सही कि महात्मा की कही बात सच है या नहीं.”
अकबर बीरबल की बात मान गए और दूसरे दिन एक नियत समय पर खेत में पहुँचने के लिए दरबारियों को आदेशित कर दिया.
अगले दिन सभी नियत समय पर खेत पर पहुँचे. अकबर ने बीरबल को सोने से बना धान का पौधा खेत में लगाने को कहा. लेकिन बीरबल ने इंकार करते हुए कहा, “जहाँपनाह! महात्मा ने यह पौधा देते हुए मुझे निर्देश दिया था कि जिस व्यक्ति ने कभी झूठ ना बोला हो, उसके द्वारा लगाने पर ही खेत में सोने की फ़सल होगी. इसलिए मैं तो यह पौधा लगा नहीं सकता. कृपया आप दरबारियों में से किसी को यह पौधा लगाने का आदेश दे दीजिये.”
अकबर ने जब दरबारियों से धान का वह पौधा लगाने कहा, तो कोई सामने नहीं आया. अकबर समझ गए कि सभी ने कभी ना कभी झूठ बोला है. तब बीरबल ने वह पौधा अकबर के हाथ में दे दिया और बोला, “जहाँपनाह, यहाँ तो कोई भी सच्चा नहीं है. इसलिए ये पौधा आप ही लगायें.”
लेकिन अकबर भी वह पौधा लेने में हिचकने लगे और बोले, ”बचपन में हमने भी झूठ बोला है. कब ये याद नहीं, पर बोला है. इसलिए हम भी यह पौधा नहीं लगा सकते.”
यह सुनने के बाद बीरबल मुस्कुराते हुए बोला, “जहाँपनाह, इस पौधे को मैंने सुनार से बनवाया है. मेरा उद्देश्य मात्र आपको यह समझाना था कि दुनिया में लोग कभी न कभी झूठ बोलते ही हैं. जिस झूठ से किसी का बुरा ना हो, वह झूठ झूठ नहीं है.”
अकबर बीरबल की बात समझ गए थे. उन्होंने उसे वापस दरबार में स्थान दे दिया और सेवक की फांसी की सजा माफ़ कर दी.
हम आशा करते हैं कि आपको हमारी ये पोस्ट, Akbar Birbal hindi stories : अकबर- बीरबल की प्रसिद्ध कहानियाँ। जरूर पसंद आयी होगी।
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