Top 5 moral stories in hindi: शिक्षाप्रद नैतिक कहानियाँ।
Top 5 moral stories in hindi: शिक्षाप्रद नैतिक कहानियाँ।
1: Hindi moral story (हाथी और बकरी की कहानी)
एक जंगल में एक हाथी और एक बकरी रहते थे। दोनों बहुत पक्के दोस्त थे। दोनों साथ में मिलकर हर दिन खाने की तलाश करते और साथ में ही खाते थे। एक दिन दोनों खाने की तलाश में अपने जंगल से बहुत दूर निकल गए। वहां उन्हें एक तालाब दिखाई दिया। उसी तालाब के किनारे एक बेर का पेड़ था।
बेर का पेड़ देखकर हाथी और बकरी बहुत खुश हुए। वह दोनों बेर के पेड़ के पास गए, फिर हाथी ने अपनी सूंड से बेर के पेड़ को ज़ोर से हिलाया और ज़मीन पर ढेर सारे पके हुए बेर गिरने लगे। बकरी जल्दी-जल्दी गिरे हुए बेरों को इक्ठ्ठा करने लगी।
संयोगवश उसी बेर के पेड़ पर एक चिड़िया का घोंसला भी था, जिसमें चिड़िया का एक बच्चा सो रहा था और चिड़िया दाने की खोज में कहीं गई हुई थी। बेर का पेड़ ज़ोर से हिलाने के कारण चिड़िया का बच्चा घोंसले से बाहर तालाब में गिर पड़ा और डूबने लगा।
चिड़िया के बच्चे को डूबता हुआ देखकर, उसे बचाने के लिए बकरी तालाब में कूद गई, लेकिन बकरी को तैरना नहीं आता था। इस वजह से वह भी तालाब में डूबने लगी।
बकरी को डूबता हुआ देखकर हाथी भी तालाब में कूद गया और उसने चिड़िया के बच्चे और बकरी, दोनों को डूबने से बचा लिया।
इतने में चिड़िया भी वहां पर आ गई थी और वह अपने बच्चे को सही-सलामत देखकर बहुत खुश हुई। उसने हाथी और बकरी को इसी तालाब और बेर के पेड़ के पास रहने के लिए कहा। तब से हाथी और बकरी भी चिड़िया के साथ उस बेर के पेड़ के नीचे रहने लगे।
कुछ ही दिनों में चिड़िया का बच्चा बड़ा हो गया। चिड़िया अपने बच्चे के साथ जंगल में घूम कर आती थी और हाथी और बकरी को जंगल में किस पेड़ पर फल लगे हैं, इसकी जानकारी देती थी। इस तरह हाथी, बकरी, और चिड़िया मज़े में रहते और खाते-पीते थे।
कहानी से सीख
हमें किसी का बुरा नहीं करना चाहिए। अगर हमारी गलती से किसी को परेशानी होती है, तो उस गलती को सुधारना चाहिए और मन-मुटाव दूर करते हुए एक-दूसरे की मदद करनी चाहिए।
बेर का पेड़ देखकर हाथी और बकरी बहुत खुश हुए। वह दोनों बेर के पेड़ के पास गए, फिर हाथी ने अपनी सूंड से बेर के पेड़ को ज़ोर से हिलाया और ज़मीन पर ढेर सारे पके हुए बेर गिरने लगे। बकरी जल्दी-जल्दी गिरे हुए बेरों को इक्ठ्ठा करने लगी।
संयोगवश उसी बेर के पेड़ पर एक चिड़िया का घोंसला भी था, जिसमें चिड़िया का एक बच्चा सो रहा था और चिड़िया दाने की खोज में कहीं गई हुई थी। बेर का पेड़ ज़ोर से हिलाने के कारण चिड़िया का बच्चा घोंसले से बाहर तालाब में गिर पड़ा और डूबने लगा।
चिड़िया के बच्चे को डूबता हुआ देखकर, उसे बचाने के लिए बकरी तालाब में कूद गई, लेकिन बकरी को तैरना नहीं आता था। इस वजह से वह भी तालाब में डूबने लगी।
बकरी को डूबता हुआ देखकर हाथी भी तालाब में कूद गया और उसने चिड़िया के बच्चे और बकरी, दोनों को डूबने से बचा लिया।
इतने में चिड़िया भी वहां पर आ गई थी और वह अपने बच्चे को सही-सलामत देखकर बहुत खुश हुई। उसने हाथी और बकरी को इसी तालाब और बेर के पेड़ के पास रहने के लिए कहा। तब से हाथी और बकरी भी चिड़िया के साथ उस बेर के पेड़ के नीचे रहने लगे।
कुछ ही दिनों में चिड़िया का बच्चा बड़ा हो गया। चिड़िया अपने बच्चे के साथ जंगल में घूम कर आती थी और हाथी और बकरी को जंगल में किस पेड़ पर फल लगे हैं, इसकी जानकारी देती थी। इस तरह हाथी, बकरी, और चिड़िया मज़े में रहते और खाते-पीते थे।
कहानी से सीख
हमें किसी का बुरा नहीं करना चाहिए। अगर हमारी गलती से किसी को परेशानी होती है, तो उस गलती को सुधारना चाहिए और मन-मुटाव दूर करते हुए एक-दूसरे की मदद करनी चाहिए।
2: Moral story in hindi (बंदर और मगरमच्छ)
एक घना जंगल था, जहां जानवर एक दूसरे के साथ बहुत प्यार से रहा करते थे। उस जंगल के बीच एक बहुत सुंदर और बड़ा तालाब था। उस तालाब में एक मगरमच्छ रहता था। तालाब के चारों ओर बहुत सारे फलों के पेड़ लगे हुए थे। उनमें से एक पेड़ पर बंदर रहता था। बंदर और मगरमच्छ एक दूसरे के बहुत अच्छे दोस्त थे।
बंदर पेड़ से मीठे और स्वादिष्ट फल खाता था और साथ ही अपने दोस्त मगर को भी देता था। बंदर अपने दोस्त मगर का खास ख्याल रखता और मगर भी उसे अपनी पीठ पर बैठाकर पूरे तालाब में घुमाता था।
दिन निकलते गए और दोनों की दोस्ती गहरी होती गई। बंदर जो फल मगरमच्छ को देता था, मगरमच्छ उनमें से कुछ फल अपनी पत्नी को भी खिलाता था। दोनों फलों को बड़े ही चाव से खाते थे।
बहुत दिनों के बाद एक बार मगर की पत्नी ने कहा कि बंदर तो हमेशा ही स्वादिष्ट फल खाता रहता है। जरा सोचो उसका कलेजा कितना स्वादिष्ट होगा। वह मगर से जिद करने लगी कि उसे बंदर का कलेजा खाना है।
मगर ने उसे समझाने कि कोशिश की, लेकिन उसने नहीं माना और वो मगर से रूठ गई। अब मगर को न चाहते हुए भी हां बोलना पड़ा। उसने कहा कि वो दूसरे दिन बंदर को अपनी गुफा में लेकर आ जाएगा, तब उसका कलेजा निकालकर खा लेना। इसके बाद मगर की पत्नी मान गई।
बंदर पेड़ से मीठे और स्वादिष्ट फल खाता था और साथ ही अपने दोस्त मगर को भी देता था। बंदर अपने दोस्त मगर का खास ख्याल रखता और मगर भी उसे अपनी पीठ पर बैठाकर पूरे तालाब में घुमाता था।
दिन निकलते गए और दोनों की दोस्ती गहरी होती गई। बंदर जो फल मगरमच्छ को देता था, मगरमच्छ उनमें से कुछ फल अपनी पत्नी को भी खिलाता था। दोनों फलों को बड़े ही चाव से खाते थे।
बहुत दिनों के बाद एक बार मगर की पत्नी ने कहा कि बंदर तो हमेशा ही स्वादिष्ट फल खाता रहता है। जरा सोचो उसका कलेजा कितना स्वादिष्ट होगा। वह मगर से जिद करने लगी कि उसे बंदर का कलेजा खाना है।
मगर ने उसे समझाने कि कोशिश की, लेकिन उसने नहीं माना और वो मगर से रूठ गई। अब मगर को न चाहते हुए भी हां बोलना पड़ा। उसने कहा कि वो दूसरे दिन बंदर को अपनी गुफा में लेकर आ जाएगा, तब उसका कलेजा निकालकर खा लेना। इसके बाद मगर की पत्नी मान गई।
हर दिन की तरह स्वादिष्ट फलों के साथ बंदर मगर का इंतजार करने लगा। कुछ ही देर में मगर भी आ गया और दोनों ने मिलकर फल खाए। मगरमच्छ बोला कि दोस्त आज तुम्हारी भाभी तुमसे मिलना चाहती है। चलो तालाब की दूसरी ओर मेरा घर है, आज वहां चलते हैं।
बंदर झट से मान गया और उछलकर मगर की पीठ पर बैठ गया। मगर उसे लेकर अपनी गुफा की ओर बढ़ने लगा। जैसे ही दोनों तालाब के बीच पहुंचे, मगर ने कहा कि मित्र आज तुम्हारी भाभी की इच्छा है कि वो तुम्हारा कलेजा खाये। ऐसा कहकर उसने पूरी बात बताई।
बात सुनकर बंदर कुछ सोचने लगा और बोला मित्र तुमने मुझे यह पहले क्यों नहीं बताया। मगर ने पूछा क्यों मित्र क्या हाे गया। बंदर बोला कि मैं अपना कलेजा तो पेड़ पर ही छोड़ आ हूं। तुम मुझे वापस ले चलो तो मैं अपना कलेजा साथ में ले आऊंगा।
मगर बंदर की बातों में आ गया और वापस किनारे पर आ गया। वो दोनों जैसे ही किनारे पर पहुंचे बंदर झट से पेड़ पर चढ़ गया और बोला कि मूर्ख तुझे पता नहीं कि कलेजा हमारे अंदर ही होता है। मैं हमेशा ही तुम्हारा भला सोचता रहा और तुम मुझे ही खाने चले थे। कैसी मित्रता है यह तुम्हारी। चले जाओ यहां से।
मगर अपनी करनी पर बहुत शर्मिंदा हुआ और उसने बंदर से माफी मांगी, लेकिन अब बंदर उसकी बातों में नहीं आने वाला था।
कहानी से सीख
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि संकट के समय हमें घबराना नहीं चाहिए। मुसीबत के समय अपनी बुद्धि का उपयोग कर उसे दूर करने का उपाय सोचना चाहिए।
बंदर झट से मान गया और उछलकर मगर की पीठ पर बैठ गया। मगर उसे लेकर अपनी गुफा की ओर बढ़ने लगा। जैसे ही दोनों तालाब के बीच पहुंचे, मगर ने कहा कि मित्र आज तुम्हारी भाभी की इच्छा है कि वो तुम्हारा कलेजा खाये। ऐसा कहकर उसने पूरी बात बताई।
बात सुनकर बंदर कुछ सोचने लगा और बोला मित्र तुमने मुझे यह पहले क्यों नहीं बताया। मगर ने पूछा क्यों मित्र क्या हाे गया। बंदर बोला कि मैं अपना कलेजा तो पेड़ पर ही छोड़ आ हूं। तुम मुझे वापस ले चलो तो मैं अपना कलेजा साथ में ले आऊंगा।
मगर बंदर की बातों में आ गया और वापस किनारे पर आ गया। वो दोनों जैसे ही किनारे पर पहुंचे बंदर झट से पेड़ पर चढ़ गया और बोला कि मूर्ख तुझे पता नहीं कि कलेजा हमारे अंदर ही होता है। मैं हमेशा ही तुम्हारा भला सोचता रहा और तुम मुझे ही खाने चले थे। कैसी मित्रता है यह तुम्हारी। चले जाओ यहां से।
मगर अपनी करनी पर बहुत शर्मिंदा हुआ और उसने बंदर से माफी मांगी, लेकिन अब बंदर उसकी बातों में नहीं आने वाला था।
कहानी से सीख
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि संकट के समय हमें घबराना नहीं चाहिए। मुसीबत के समय अपनी बुद्धि का उपयोग कर उसे दूर करने का उपाय सोचना चाहिए।
3: Moral story of brahman and thief(ब्राह्मण और ठग)
किसी गांव में शम्भुदयाल नाम का एक प्रसिद्ध ब्राह्मण रहता था। वह बहुत विद्वान था और लोग आए दिन उस अपने घर में भोजन के लिए निमंत्रण देते रहते थे। एक दिन ब्राह्मण एक सेठ जी के यहां से भोजन करके आ रहा था। लौटते समय सेठ ने ब्राह्मण को एक बकरी उपहार में दी, जिससे ब्राह्मण रोजाना उसका दूध पी सकें।
ब्राह्मण बकरी को कंधे पर रखकर घर की ओर जा रहा था। रास्ते में तीन ठगों ने ब्राह्मण और उसकी बकरी को देख लिया और ब्राह्मण को लूटने का षड्यंत्र रचा। वे ठग थोड़ी-थोड़ी दूरी पर जाकर खड़े हो गए।
जैसे ही ब्राह्मण पहले ठग के पास से गुजरा, तो ठग जोर-जोर से हंसने लगा। ब्राह्मण ने इसका कारण पूछा तो ठग ने कहा, ‘महाराज मैं पहली बार देख रहा हूं कि एक ब्राह्मण देवता अपने कंधे के ऊपर गधे को लेकर जा रहे हैं।’ ब्राह्मण को उसकी बात सुनकर गुस्सा आ गया और ठग को भला-बुरा कहते हुए आगे बढ़ गया।
थोड़ी ही दूरी पर ब्राह्मण को दूसरा ठग मिला। ठग ने गंभीर स्वर में पूछा, ‘हे ब्राह्मण महाराज, क्या इस गधे के पैर में चोट लगी है, जो आप इसे अपने कंधे पर रखकर ले जा रहे हैं।’ ब्राह्मण उसकी बात सुनकर सोच में पड़ गया और ठग से कहा, ‘तुम्हे दिखाई नहीं देता है कि यह बकरी है, गधा नहीं। ठग ने कहा, ‘महाराज शायद आपको किसी ने बेवकूफ बना दिया है, बकरी की जगह गधा देकर।’ ब्राह्मण ने उसकी बात सुनी और सोचता हुआ आगे बढ़ गया।
ब्राह्मण बकरी को कंधे पर रखकर घर की ओर जा रहा था। रास्ते में तीन ठगों ने ब्राह्मण और उसकी बकरी को देख लिया और ब्राह्मण को लूटने का षड्यंत्र रचा। वे ठग थोड़ी-थोड़ी दूरी पर जाकर खड़े हो गए।
जैसे ही ब्राह्मण पहले ठग के पास से गुजरा, तो ठग जोर-जोर से हंसने लगा। ब्राह्मण ने इसका कारण पूछा तो ठग ने कहा, ‘महाराज मैं पहली बार देख रहा हूं कि एक ब्राह्मण देवता अपने कंधे के ऊपर गधे को लेकर जा रहे हैं।’ ब्राह्मण को उसकी बात सुनकर गुस्सा आ गया और ठग को भला-बुरा कहते हुए आगे बढ़ गया।
थोड़ी ही दूरी पर ब्राह्मण को दूसरा ठग मिला। ठग ने गंभीर स्वर में पूछा, ‘हे ब्राह्मण महाराज, क्या इस गधे के पैर में चोट लगी है, जो आप इसे अपने कंधे पर रखकर ले जा रहे हैं।’ ब्राह्मण उसकी बात सुनकर सोच में पड़ गया और ठग से कहा, ‘तुम्हे दिखाई नहीं देता है कि यह बकरी है, गधा नहीं। ठग ने कहा, ‘महाराज शायद आपको किसी ने बेवकूफ बना दिया है, बकरी की जगह गधा देकर।’ ब्राह्मण ने उसकी बात सुनी और सोचता हुआ आगे बढ़ गया।
कुछ दूरी पर ही उसे तीसरा ठग दिखाई दिया। तीसरे ठग ने ब्राह्मण को देखते ही कहा, ‘महाराज आप क्यों इतनी तकलीफ उठा रहे हैं, आप कहें, तो मैं इसे आपके घर तक छोड़ कर आ जाता हूं, मुझे आपका आशीर्वाद और पुण्य दोनों मिल जाएंगे।’ ठग की बात सुनकर ब्राह्मण खुश हो गया और बकरी को उसके कंधे पर रख दिया।
थोड़ी दूर जाने पर तीसरे ठग ने पूछा, ‘महाराज आप इस गधे को कहां से लेकर आ रहें हैं।’ ब्राह्मण ने उसकी बात सुनी और कहा, ‘भले मानस यह गधा नहीं बकरी है।’ ठग ने जोर देकर कहा, ‘हे ब्राह्मण देवता, लगता है किसी ने आपके साथ छल किया है और यह गधा दे दिया।’
ब्राह्मण ने सोचा कि रास्ते में जो भी मिल रहा है बस एक ही बात कह रहा है। तब उसने ठग से कहा, ‘एक काम करो, यह गधा मैं तुम्हें दान करता हूं, तुम ही इसे रख लो।’ ठग ने ब्राह्मण की बात सुनी और बकरी को लेकर अपने साथियों के पास आ गया। फिर तीनों ठगों ने बाजार में उस बकरी को बेचकर अच्छी कमाई की और ब्राह्मण ने उनकी बात मानकर अपना नुकसान कर लिया।
कहानी से सीख :
किसी भी झूठ को अगर कई बार बोला जाए, तो वो सच लगने लगता है, इसलिए हमेशा अपने दिमाग का उपयोग करें और सोच-विचार कर ही किसी पर विश्वास करें।
थोड़ी दूर जाने पर तीसरे ठग ने पूछा, ‘महाराज आप इस गधे को कहां से लेकर आ रहें हैं।’ ब्राह्मण ने उसकी बात सुनी और कहा, ‘भले मानस यह गधा नहीं बकरी है।’ ठग ने जोर देकर कहा, ‘हे ब्राह्मण देवता, लगता है किसी ने आपके साथ छल किया है और यह गधा दे दिया।’
ब्राह्मण ने सोचा कि रास्ते में जो भी मिल रहा है बस एक ही बात कह रहा है। तब उसने ठग से कहा, ‘एक काम करो, यह गधा मैं तुम्हें दान करता हूं, तुम ही इसे रख लो।’ ठग ने ब्राह्मण की बात सुनी और बकरी को लेकर अपने साथियों के पास आ गया। फिर तीनों ठगों ने बाजार में उस बकरी को बेचकर अच्छी कमाई की और ब्राह्मण ने उनकी बात मानकर अपना नुकसान कर लिया।
कहानी से सीख :
किसी भी झूठ को अगर कई बार बोला जाए, तो वो सच लगने लगता है, इसलिए हमेशा अपने दिमाग का उपयोग करें और सोच-विचार कर ही किसी पर विश्वास करें।
4:Hindi kahani (छिपा हुआ धन, सच्चा धन)
एक गांव में एक किसान रहता था। उसके चार बेटे थे। किसान मेहनती था। लेकिन उसके चारों बेटे आलसी थे। किसान उन्हें समझाया करता, पर उनमें कोई असर नहीं होता।
किसान जब बूढ़ा हो गया और उसे लगने लगा कि अब उसके कुछ ही दिन बच गए हैं, तो उसने अपने चारों बेटों को बुलाया और उनसे कहा –
“सुनो बेटों! अब मैं कुछ ही दिन का मेहमान हूं। मरने के पहले तुम्हें एक राज़ की बात बताना चाहता हूं।”
चारों बेटे ध्यान से सुनने लगे। किसान ने आगे कहा –
“अपने खेत में अपार धन गड़ा हुआ है। मेरे मरने के बाद तुम खेत को गहराई तक खोदना। तुम्हें धन मिल जायेगा। तुम लोग आराम का जीवन बिताना।”
चारों बेटे खुश हो गए। उन्हें लगा कि अब उन्हें सारी ज़िंदगी काम नहीं करना पड़ेगा।
कुछ दिनों बाद किसान की मृत्यु हो गई। उसका अंतिम संस्कार करने के बाद चारों बेटे खेत में जाकर खुदाई करने लगे। कई दिनों तक खेद खोदने के बाद भी उन्हें कुछ नहीं मिला। उन्हें अपने पिता पर बहुत गुस्सा आया। लेकिन उन्होंने सोचा कि जब खेत खुद ही गया है, तो यहां धान बो देते हैं। उन्होंने खेत में धान बो दिया।
कुछ माह बाद खेत धान से लहलहा उठा। धान बेचकर उन्होंने अच्छा खासा धन कमा लिया। उस दिन उन्हें अपनी पिता की बात का अर्थ समझ आया कि उनके खेत में अपार धन छुपा है, बस उन्हें मेहनत करने की ज़रूरत है।
उन्होंने उस दिन से जीतोड़ मेहनत करने का संकल्प ले लिया।
सीख (Moral Of Chhipa Hua Dhan Kahani)
मेहनत का कोई विकल्प नहीं। आलस छोड़ो, मेहनत करो।5
“सुनो बेटों! अब मैं कुछ ही दिन का मेहमान हूं। मरने के पहले तुम्हें एक राज़ की बात बताना चाहता हूं।”
चारों बेटे ध्यान से सुनने लगे। किसान ने आगे कहा –
“अपने खेत में अपार धन गड़ा हुआ है। मेरे मरने के बाद तुम खेत को गहराई तक खोदना। तुम्हें धन मिल जायेगा। तुम लोग आराम का जीवन बिताना।”
चारों बेटे खुश हो गए। उन्हें लगा कि अब उन्हें सारी ज़िंदगी काम नहीं करना पड़ेगा।
कुछ दिनों बाद किसान की मृत्यु हो गई। उसका अंतिम संस्कार करने के बाद चारों बेटे खेत में जाकर खुदाई करने लगे। कई दिनों तक खेद खोदने के बाद भी उन्हें कुछ नहीं मिला। उन्हें अपने पिता पर बहुत गुस्सा आया। लेकिन उन्होंने सोचा कि जब खेत खुद ही गया है, तो यहां धान बो देते हैं। उन्होंने खेत में धान बो दिया।
कुछ माह बाद खेत धान से लहलहा उठा। धान बेचकर उन्होंने अच्छा खासा धन कमा लिया। उस दिन उन्हें अपनी पिता की बात का अर्थ समझ आया कि उनके खेत में अपार धन छुपा है, बस उन्हें मेहनत करने की ज़रूरत है।
उन्होंने उस दिन से जीतोड़ मेहनत करने का संकल्प ले लिया।
सीख (Moral Of Chhipa Hua Dhan Kahani)
मेहनत का कोई विकल्प नहीं। आलस छोड़ो, मेहनत करो।5
5: Hindi story (बंदर और उल्लू की कहानी)
किसी जंगल में एक उल्लू रहता था। उसे दिन में कुछ दिखाई नहीं देता था, इसलिए वह दिनभर एक पेड़ पर अपने घोंसले में छिपकर रहता था। सिर्फ रात होने पर ही वह भोजन के लिए बाहर निकलता था। एक बार की बात के गर्मियों का मौसम था। दोपहर का समय था और बहुत तेज धूप थी। तभी कहीं से एक बंदर आया और वह उल्लू के घोसले वाले पेड़ पर आकर बैठ गया। गर्मी और धूप से परेशान बंदन ने कहा – “ऊफ, बहुत गर्मी है। आकाश में सूर्य भी आग के किसी बड़े गोले की तरह चमक रहा है।”
बंदर की बात को उल्लू ने भी सुन लिया। उससे रहा नहीं गया और बीच में ही बोल पड़ा – “यह तुम झूठ कह रहे हो? सूर्य नहीं, बल्कि अगर चंद्रमा के चमकने की बात कहते तो मैं इसे सच मान लेता।”
बंदर बोला – “भला दिन में चंद्रमा कैसे चमक सकता हैं। वह तो रात में चमकता है और यह दिन का समय है, तो दिन में सूर्य ही चमकेगा। यही कारण है कि सूर्य की तेज रोशानी की वजह से बहुत ज्यादा गर्मी हो रही है।”
उस बंदर ने उल्लू को अपनी बात समझाने का बहुत प्रयास किया कि दिन में सूरज ही चमकता है चंद्रमा नहीं, लेकिन उल्लू भी अपनी ही जिद पर अड़ा था। इसके बाद उल्लू ने कहा – “चलो, हम दोनों मेरे एक मित्र के पास चलते हैं, वही इसका निर्णय करेगा।”
बंदर की बात को उल्लू ने भी सुन लिया। उससे रहा नहीं गया और बीच में ही बोल पड़ा – “यह तुम झूठ कह रहे हो? सूर्य नहीं, बल्कि अगर चंद्रमा के चमकने की बात कहते तो मैं इसे सच मान लेता।”
बंदर बोला – “भला दिन में चंद्रमा कैसे चमक सकता हैं। वह तो रात में चमकता है और यह दिन का समय है, तो दिन में सूर्य ही चमकेगा। यही कारण है कि सूर्य की तेज रोशानी की वजह से बहुत ज्यादा गर्मी हो रही है।”
उस बंदर ने उल्लू को अपनी बात समझाने का बहुत प्रयास किया कि दिन में सूरज ही चमकता है चंद्रमा नहीं, लेकिन उल्लू भी अपनी ही जिद पर अड़ा था। इसके बाद उल्लू ने कहा – “चलो, हम दोनों मेरे एक मित्र के पास चलते हैं, वही इसका निर्णय करेगा।”
बंदर और उल्लू दोनों एक दूसरे पेड़ पर गए। उस दूसरे पेड़ पर उल्लुओं का एक बड़ा झुंड रहता था। उल्लू ने सभी को बुलाया और उनसे कहा कि दिन में आकार में सूर्य चमक रहा है या नहीं यह तुम सब मिलकर बताओ।
उल्लू की बात सुनकर उल्लुओं का पूरा झुंड हंसने लगा। वह बंदर की बात का मजाक उड़ाने लगें। उन्होनें कहा – “नहीं, तुम बेवकूफों जैसी बात कर रहे हो। इस समय आकार में तो चंद्रमा ही चमक रहा है और आकाश में सूर्य के चमकने की झूठी बात बोलकर हमारी बस्ती में झूठ का प्रचार मत करो।”
उल्लुओं के झुंड की बात सुनने के बाद भी बंदर अपनी ही बात पर अड़ा हुआ था। जिस देखर सभी उल्लू गुस्सा हो गए और वे सारे के सारे बंदर को मारने के लिए उसपर झपट पढ़े। दिन का समय था और उल्लुओं को कम दिखाई दे रहा था इसी वजह से बंदर वहां से बचकर भाग निकलने में कामयाब हो गया और उसने अपनी जान बचाई।
कहानी से सीख
उल्लू की बात सुनकर उल्लुओं का पूरा झुंड हंसने लगा। वह बंदर की बात का मजाक उड़ाने लगें। उन्होनें कहा – “नहीं, तुम बेवकूफों जैसी बात कर रहे हो। इस समय आकार में तो चंद्रमा ही चमक रहा है और आकाश में सूर्य के चमकने की झूठी बात बोलकर हमारी बस्ती में झूठ का प्रचार मत करो।”
उल्लुओं के झुंड की बात सुनने के बाद भी बंदर अपनी ही बात पर अड़ा हुआ था। जिस देखर सभी उल्लू गुस्सा हो गए और वे सारे के सारे बंदर को मारने के लिए उसपर झपट पढ़े। दिन का समय था और उल्लुओं को कम दिखाई दे रहा था इसी वजह से बंदर वहां से बचकर भाग निकलने में कामयाब हो गया और उसने अपनी जान बचाई।
कहानी से सीख
यह कहानी हमें सीख देती है कि मूर्ख मनुष्य कभी भी विद्वानों की बात को सच नहीं मानता है। ऐसे मूर्ख लोग अपने बहुमत से सत्य को भी असत्य साबित कर सकते हैं।
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